मर्द अक्सर महिलाओं की सुंदरता देखकर मोहित हो जाते हैं। महिलाओं की सुंदरता और यौवन किसी भी स्त्री का गहना हो सकते हैं, लेकिन उनमें एक महत्वपूर्ण गुण भी होना चाहिए।
जिस स्त्री में यह विशिष्ट गुण होता है, वह बलवान कही जा सकती है और अपने पति को प्रसन्न कर सकती है और अपने परिवार को खुश कर सकती है।
आपने भारत के प्रसिद्ध विद्वान आचार्य चाणक्य के बारे में सुना होगा। लेकिन हम आपको बता देंगे कि चंद्रगुप्त मौर्य आचार्य चाणक्य मौर्य वंश के संस्थापक थे।
महान अर्थशास्त्री, कूटराजनीतिज्ञ और विद्वान आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति पुस्तक “चाणक्य नीति” में घर, परिवार और समाज के बारे में बहुत कुछ लिखा है।
पति-पत्नी के रिश्तों में सामंजस्य बनाए रखने की बात करते हुए आचार्य चाणक्य ने स्त्री के गुणों पर भी बहुत कुछ लिखा है। आचार्य चाणक्य ने कहा कि..।
मतलब, स्त्रियों के गुणों पर चर्चा करते हुए आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बाजुओं की शक्ति वाले राजा शक्तिशाली होते हैं। ब्रह्मज्ञानी शक्तिशाली हैं।
स्त्रियों का सर्वोच्च बल सुंदरता, यौवन और मधुरता है। अर्थात, राजा की बाजुओं में शक्ति होती है, तो वह शक्तिशाली होतीहै। ब्रह्मज्ञानी शक्तिशाली हैं। ब्रह्मज्ञान ही ब्राह्मण की शक्ति है। स्त्रियों का सबसे बड़ा बल सुंदरता, जवानी और मधुर वाणी है।
जीवन के सिद्धांत को लेकर आचार्य चाणक्य लिखते हैं…
यही कारण है कि जीवन का सिद्धान्त कहता है कि सब कुछ वर्जित है, चाहे वह सादगी या सीधेपन के स्तर पर ही क्यों न हो। जैसा कि आचार्य चाणक्य ने कहा है, ज्यादा सीधा नहीं होना चाहिए। जंगल में जाकर देखने से पता चलता है कि टेढ़े-मेढ़े पेड़ों को छोड़कर सीधे वृक्ष काट लिए जाते हैं।
मतलब साफ है कि व्यक्ति को अधिक भोला-भाला और सीधा नहीं होना चाहिए। अधिक सीधे व्यक्ति को मूर्ख बनाने का प्रयास करता है। उसके जीवन की अवधि कम हो जाती है। जबकि टेढ़े और गुरुल लोगों से कोई नहीं कहता। प्रकृति का नियम यही है। वन में सीधे पेड़ काट लिया जाता है, जबकि टेढ़े-मेढ़े पेड़ खड़े रहते हैं।
हंस के समान न बरतें
यहां हंस को आदर्श मानकर आचार्य चाणक्य कहते हैं कि हंस जिस तालाब में अधिक पानी होता है, वहीं रहता है। वे दूसरे स्थान पर चले जाते हैं अगर वहां का पानी सूख जाता है।
वे फिर वहां लौट आते हैं जब वर्षा या नदी से जल फिर से भर जाता है। यही कारण है कि हंस किसी जलाशय को छोड़ देते हैं या उसके पास रहते हैं।
यहां आचार्य चाणक्य कहते हैं कि हंस के समान व्यवहार नहीं करना चाहिए। उसे चाहिए कि वह अपने आश्रय को कभी नहीं छोड़ेगा। और अगर छोड़ना भी पड़े तो फिर नहीं आना चाहिए।
अपने आश्रयदाता को बार-बार छोड़कर वापस आना मानवता नहीं है। यही कारण है कि नीति कहती है कि एक संबंध या मैत्री बनाने के बाद उसे अकारण ही तोड़ना उचित नहीं है।